State Tree खेजड़ी का महत्व और हमारे जीवन में इसका उपयोग
State Tree खेजड़ी का महत्व और हमारे जीवन में इसका उपयोग
खेजड़ी राजस्थान का राज्य वृक्ष है यह पेड़ राजस्थान के पश्चिमी भाग थार के मरुस्थल में बहुतायत रूप से पाया जाता है। जो जगह जगह मिलता है।
मारवाड़ी में इसे शामी, जॉन्टी, खेज, खेजड़ी के रूप में जाना जाता है। भारतीय वैदिक युग में भी खेजड़ी को एक धार्मिक वृक्ष के रूप में मान्यता प्राप्त है।खेजड़ी वृक्ष की पूजा हिन्दू धर्म में दशहरा के दिन, दीपालवी ओर कुछ समाज में अन्य त्योहारों पर पूजा जाता है।
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खेजड़ी संख्या की दृष्टि से राजस्थान में सबसे ज्यादा पाया जाने वाला वृक्ष है जो राजस्थान के लगभग मारवाड़, मेवाड़,ढूंढाड़, शेखावाटी ओर मध्य भाग में सब जगह पाया जाता है।
खेजड़ी एक मरुस्थलीय पेड़ है जो तीनों सीजन में हरा भरा रहता है मरुस्थल में बहुत गहराई से पानी खींचने की क्षमता है।
खेजड़ी का वानस्पतिक नाम प्रोसेपिस सिनेनेरिया है जिसको विज्ञान की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
वर्तमान में राजस्थान में खेजड़ी का वृक्ष खत्म होता जा रहा है क्योंकि खेजड़ी के पेड़ों की जड़ों में दीमक और खेती के समय डाला जाने वाला खरपतवार नाशक 2 ,4D और यूरिया से इसकी जड़े कमजोर हो रही है ओर धीरे धीरे सुख रही है।
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पश्चिमी राजस्थान में सौर ओर पवन ऊर्जा व अनार की खेती बनी खेजड़ी की दुश्मन
राजस्थान के थार के मरुस्थल में सौर ऊर्जा ,पवन ऊर्जा की अपार संभावना है सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने ओर पवन चक्की लगाने के लिए ज्यादा मात्रा में जमीन को खाली करने के लिए खेजड़ी के वृक्ष को काटा जाता है जिससे खेजड़ी की भारी मात्रा में कटाई हो रही है।
राजस्थान में नर्मदा नहर आने के बाद अनार की खेती बड़ी मात्रा हो रही है जिसकी बदौलत अनार के पौधे के बीच में आने पर खेजड़ी के पेड़ काटे जा रहे है जिससे खेजड़ी की संख्या में काफी कमी हो रही है।
1773 में राजस्थान में खेजड़ी हेतु विरोध ओर बलिदान
राजस्थान के जोधपुर किले के निर्माण के समय महाराजा अभय सिंह के दौरान किले का जीर्णोद्वार करवाया का रहा था। तब किले के निर्माण में लकड़ी के लिए खेजड़ी की बहुत ज्यादा जरूरत थी तब जोधपुर के आस पास खेजड़ी के वृक्ष हजारों की मात्रा में थे ।
महाराजा के आदेश पर उनके सैनिकों ने खेजड़ली गांव में खेजड़ी के वृक्ष काटने का आदेश दिया और सैनिक दल बल के साथ खेजड़ी काटने के लिए पहुंचे।
वृक्ष को समर्पित समाज
खेजड़ली गांव में बिश्नोई समाज के लोग रहते है बिश्नोई समाज में वृक्ष काटना और जीवो को मारना वर्जित है बिश्नोई धर्म गुरु जम्भेश्वर भगवान के द्वारा बनाए गए 29 नियमों के अनुसार जीव दया पालनी ,रुख लीला नहीं घावों । इस लोकोक्ति के अनुसार जीव की रक्षा करनी चाहिए और वृक्ष नहीं काटना चाहिए ।
सैनिक खेजड़ी काटने के लिए तैयार ही तो बिश्नोई समाज के लोगों ने विरोध शुरू किया। सैनिकों ने लोगो की नहीं सुनी और अपना काम जारी रखा ।
तब बिश्नोई समाज की शहीद नारी अमृता देवी बिश्नोई, उनकी दो पुत्रियों, पति ओर बिश्नोई समाज के अमृता सहित 363 लोग पेड़ो से चिपक गए और सैनिकों ने उन लोगों सहित पेड़ो से चिपके लोगो को काट दिया ।
करीब 363 लोगों के बलिदान के बाद राजा को पता चला और राजा ने उस गांव में खेजड़ी के पेड़ काटने पर रोक लगवाई और खेजड़ली गांव को संरक्षित क्षेत्र घोषित करते हुए समाज से माफी मांगी।
आज खेजड़ली गांव में शहीद अमृता के नाम से स्मारक बना हुआ है ओर अष्टमी के दिन हर वर्ष विश्व का एकमात्र मेला लगता है।
खेजड़ी का अपने जीवन में महत्व
खेजड़ी के वृक्ष के पत्तों को राजस्थान के मध्यम वर्ग का किसान परिवार खेती के साथ पशुपालन भी करता है लोग पशुओं को इस वृक्ष की पत्तियां खिलाकर पशुपालन करते है।
एक बड़ा खेजड़ा एक किसान के एक पशु को साल भर भोजन देता है और पशुपालन अच्छी तरह किया जा सकता है।
खेजड़ी के वृक्ष के ऊपर गर्मियों के दिनों में सांगरी नमक फली लगती है जो राजस्थान सहित विदेशों में जाती है यह फली सब्जी बनाने में महत्वपूर्ण है ।
राजस्थान की प्रसिद्द पंचकुटा सब्जी जिसमें केर,सांगरी,कुमटिया, भटकानियां, गुंदा को मिलकर बनाया जाता है।
खेजड़ी की लकड़ी ठोस होती है जिसको जलावन और इमारती रूप से काम आती है।
खेजड़ी की शाल को तोड़कर हिंदू धर्म के लोग यज्ञ में काम लेते है। हवन करवाया जाता है।